अन्वेषण अनवरत
कभी अदृश्य
कभी मुखरित
एक तार अनंत का
झंकृत
तन्मय होने
अपने मूल स्वर में
तन-मन के तंतु
छेड़ छेड़
ढूंढता
एक राग वह
जिसमें
अनुनादित हो
सीमित, असीमित संग
2
कभी बंशी
कभी डमरू
कभी घुँघरू
और कभी
एक मौन सा
निश्चलता में
सौम्य सुन्दर संगीत
सार का
आने जाने से परे
एक है
देखना और होना
3
ओस का भीगापन
धरती के साथ
मन पर भी
स्निग्ध शीतलता
खुली सब ग्रंथियां
एक मुस्कान मात्र से
छू लेता
सारी सृष्टि को
प्यार से जो
क्या यह
विद्यमान रहता है
मेरे ही भीतर
नित्य निरंतर
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
16 फरवरी 2013
3 comments:
सुंदर ईश्वरीय भाव ....
भक्ति से पूर्ण..
बहुत सुन्दर......
अनु
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