लौटने से पहले
मुड़ कर
देख लिया जिसने
नहीं लौट पाया
आकर्षण स्थल का
जादू की तरह
सो सो कर
फिर जाग जाता है
लिख लिख कर
ढूंढता हूँ
वो संकेत जिसको लेकर
थामे रहता है
मुझे आसमान
और तरसती रहती है धरती
मेरे स्पर्श को
मैं हवाओं के साथ
तैरते हुए
जिस दिन थक जाऊंगा
शायद उस दिन
धरती पर आऊँगा
या शायद उड़ते उड़ते
एक दिन
स्वयं आकाश हो जाऊँगा
अशोक व्यास
2 comments:
भावात्मक व् बहुत सुन्दर प्रस्तुति
उड़ते उड़ते आकाश हो जाना एक अद्भुत कल्पना है..
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