Tuesday, November 6, 2012

लौटने से पहले


लौटने से पहले
मुड़ कर
देख लिया जिसने
नहीं लौट पाया
आकर्षण स्थल का
जादू की तरह
सो सो कर
फिर जाग जाता है
लिख लिख कर
ढूंढता हूँ
वो संकेत जिसको लेकर
थामे रहता है
मुझे आसमान
और तरसती रहती है धरती
मेरे स्पर्श को

मैं हवाओं के साथ
तैरते हुए
जिस दिन थक जाऊंगा
शायद उस दिन
धरती पर आऊँगा
या शायद उड़ते उड़ते
एक दिन
स्वयं  आकाश हो जाऊँगा

अशोक व्यास

2 comments:

Shalini kaushik said...

भावात्मक व् बहुत सुन्दर प्रस्तुति

प्रवीण पाण्डेय said...

उड़ते उड़ते आकाश हो जाना एक अद्भुत कल्पना है..

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