यह जो स्वाद है
कुरमुरा सा
एकाकी पल को
कर देता
जो सुनहरा सा
अभी अभी
उतर कर
लुप्त हो गए हैं
किसी ओस की बूँद में
किसी फूल की पंखुरी पर
ठहर कर
चमकते रहे
सूरज की उजियारे में
ये जो शब्द
ये शब्द
कैसे ले आते हैं
इतना अनूठा स्वाद
दिला देते
एक अनकहे, अनसुने अनंत की याद
चल कर कुछ दूर इनके साथ
जब लुप्त हो जाते हैं ये
किसी अज्ञात पगडंडी पर
लौटते हुए
साथ होता है मेरे
एक अनछुआ मौन
इसमें
न जाने कैसे
सहेज कर
धर देता है कोइ
अम्रत फल
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
8 अक्टूबर 2012
4 comments:
very nice presentation.
अब पछताए क्या होत…[कहानी] शालिनी कौशिक
सुंदर अमृतमई रचना ...!!
बहुत गहरे भाव
अहा, तत्वपूर्ण..
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