Sunday, October 7, 2012

एक अनछुआ मौन


यह जो स्वाद है 
कुरमुरा सा 
एकाकी पल को 
कर देता 
जो सुनहरा सा 
अभी अभी 
उतर कर 
लुप्त हो गए हैं 
किसी ओस की बूँद में 
किसी फूल की पंखुरी पर 
ठहर कर 
चमकते रहे 
सूरज की उजियारे में 
ये जो शब्द 

ये शब्द 
कैसे ले आते हैं 
इतना अनूठा स्वाद 
दिला देते 
एक अनकहे, अनसुने अनंत की याद 

चल कर कुछ दूर इनके साथ 
जब लुप्त हो जाते हैं ये 
किसी अज्ञात पगडंडी पर 
लौटते हुए 
साथ होता है मेरे 
एक अनछुआ मौन 
इसमें 
न जाने कैसे 
सहेज कर 
धर देता है कोइ 
अम्रत फल 

अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
8 अक्टूबर 2012 

सुंदर मौन की गाथा

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