Tuesday, October 16, 2012

बिना पूरी पहचान लिए



तो क्या 
यूं ही लौटना होगा 
बिना पूरी पहचान लिए 
बिना पूरी पहचान दिए 

और यह 
जिसे मैं पहचानना माने हूँ 
कहीं यह 
सतह का छल ही तो नहीं 

यह क्या 
कि  छूकर अनछुआ रह जाना 
पाकर भी खाली खाली 
और 
नए नए अनुभवों से स्वयं को भरते हुए भी 
एक निरंतर खालीपन सा 

यह जो भी है 
पूर्णता तो नहीं 
न मेरी 
न तुम्हारी 
तो क्या 
इस अधूरे परिचय में ही बीत जाएगा  जीवन 
बस करते रहेंगे प्रतीक्षा 
की कोइ लहर सागर की 
आयेगी किसी दिन 
लाएगा कोइ सन्देश सागर का 

या इस बार 
लहरों का आलिंगन करते हुए 
चल ही दें 
गहराई में सागर की 
पूर्णता के लिए 
शायद स्वयं को खो देना अनिवार्य है 
यह जो विलीन होना है 
अनंत सागर में 
इससे भय सा जो है 
कहीं यह अधूरे परिचय का मोह तो नहीं 
यह अधूरापन 
जिसे अपना सर्वस्व माने 
बैठे बैठे 
अब इस क्षण यूं लगा है 
इस तरह तो 
लौट ही जायेंगे 
बिना पूरी पहचान लिए 
बिना पूरी पहचान दिए 


अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
16 अक्टूबर 2012

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बिन जाने पथ की परिभाषा, अन्त नहीं आमन्त्रित।

Udan Tashtari said...

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