शब्द
कभी माँ की गोद
कभी प्रेयसी का आँचल
कभी अश्रु दर्पण
कभी गंगा जल
शब्द
भटकते हुए का सहारा
डूबती नाव का किनारा
शब्दों के सामीप्य में
उत्साह की मंगल धारा
शब्द
हमारे होने की पहचान हैं
मानव का गौरव गान हैं
श्रद्धा का परचम लेकर
शब्द परम प्रेम का गान हैं
शब्द
गति प्रदाता हैं
चिरंतन की गाथा हैं
शेष चाहे निःशेष हो
शब्द तो साथ निभाता है
शब्द
रस का सागर
या स्वयं रत्नाकर
जो डूबे सो जाने
असीम है शब्द की गागर
शब्द
अंधकार हटाते हैं
प्रकाश बन कर आते हैं
गुरु रूप ये शब्द
कितनी करूणा दिखाते हैं
शिष्य बन कर बैठें तो
सृष्टि का सार बताते हैं
अभिव्यक्ति का उपहार देकर
जब वे मौन में लौट जाते हैं
हम अभिव्यक्ति स्वरुप पर
अहंकार की मुहर लगाते हैं
और जब मैं का नगाड़ा बजाते बजाते थक जाते हैं
फिर से पावन होने भी शब्दों की शरण में ही आते हैं
अशोक व्यास
10 अक्टूबर 2012
बुधवार
2 comments:
सुंदरतम भाव ....!!
आभार ...!!
बहुत ही सुन्दर, साथ निभाता हुआ।
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