कभी कभी
ऐसा होता है समय
जैसे उदासीनता की
अनवरत लय
न कुछ करना सुहाता है
न कुछ 'ना करना' भाता है
मन मंथर गति से
किसी धुन में बहता जाता है
ऐसे में
हवाई यात्रा के बाद
लुढ़क कर आते
सामान की तरह
ढेरों संभावनाओं में
ढूंढता हूँ
मन का निश्चय
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मन जब कोई निश्चय नहीं कर पाता है
जीवन भूल भुल्लैय्या बन जाता है
इस भटकाव में तुम्हारा नाम थाम कर
बैठ गया हूँ गुफा के द्वार पर प्रणाम कर
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
11 अक्टूबर 2012
2 comments:
बहुत सुंदर
आगत की प्रतीक्षा करता हूँ तब ।
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