लौट कर
कैसे आ गया
मैं
इस गुफा में
जहाँ बैठते ही
छूट जाती हैं सब सीमायें
यह
खिलखिलाता हुआ अनंत
समेत कर मुझे अपने
शुद्ध बोध में
मुखरित कर देता है
यह कैसा मौन
की जिससे
झरता है
निष्पाप प्रेम
जाग जाती
असीम करूणा
और
सुलभ हो जाता
यह कैसा
स्वीकरण
जिसमें
सहेज लेता
हर घटना, हर मनुष्य, हर सम्बन्ध
हर काल
क्या इसी को पूर्णता कहते हैं ?
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
29 सितम्बर 2012
3 comments:
खिलती हुई ...असीम अनंत सुलभ ...आभा भोर की ...
हाँ यही है पूर्णता
बहुत सही व् शानदार प्रस्तुति आभार उत्तर प्रदेश सरकार राजनीति छोड़ जमीनी हकीकत से जुड़े.
सारी घटनायें, सारे व्यक्तित्व एक रूप में समा जाते हैं।
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