Saturday, September 29, 2012

खिलखिलाता हुआ अनंत



लौट कर 
कैसे आ गया 
मैं 
इस गुफा में 
जहाँ बैठते ही 
छूट जाती हैं सब सीमायें 

यह 
खिलखिलाता हुआ अनंत 
समेत कर मुझे अपने 
शुद्ध बोध में 

मुखरित कर देता है 
यह कैसा मौन 
की जिससे 
झरता है 
निष्पाप प्रेम 

जाग जाती 
असीम करूणा 
और 
सुलभ हो जाता 
यह कैसा 
स्वीकरण 

जिसमें 
सहेज लेता 
हर घटना, हर मनुष्य, हर सम्बन्ध
हर काल 

क्या इसी को पूर्णता कहते हैं ?

अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
29 सितम्बर 2012 

3 comments:

Anupama Tripathi said...

खिलती हुई ...असीम अनंत सुलभ ...आभा भोर की ...

Shalini kaushik said...

हाँ यही है पूर्णता
बहुत सही व् शानदार प्रस्तुति आभार उत्तर प्रदेश सरकार राजनीति छोड़ जमीनी हकीकत से जुड़े.

प्रवीण पाण्डेय said...

सारी घटनायें, सारे व्यक्तित्व एक रूप में समा जाते हैं।

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...