फिर मैं ढूँढने निकला
उस जादूगर को
जिसके झोले में से
निकल आती
एक नई कविता
हर दिन मेरे लिए
फिर देखने लगा मैं
उस शाखा को
जिसके छूने पर
भिगो देती थीं
नन्ही नन्ही कवितायेँ
मेरे अंतस को
फिर दौड़ा कर दृष्टि
चाहता था
दिख जाए
कहीं, किसी तरह से
वह एक मोड़
जिस पर
ताज़ा सन्देश धरा है
अनंत का
किसी कविता के आकार में
और फिर
थक-हार कर
देखने लगा अपने ही भीतर
वो स्वप्निल मैदान
जहां बतियाने उतार आता था
खुद आसमान
पर ओझल हो गया था
वह पूरा संसार
जो पहुंचा देता था मुझे
हर सीमा के पार
फिर अपने सघन एकांत में
शब्दों का साथ मांगते हुए
अपने मौन से पूछा मैंने
कविता का पता
और
साँसों ने कहा
कविता बंधन से मुक्त करती है
पर बंधे हुए मन के पास
प्रकट होने से डरती है
खुल कर आओ
कविता को बुलाओ
कविता अपनी सीमायें खोने का नाम है
कविता सत्य के साथ एक होने का नाम है
2
मैं
बने बनाए विचारों के घेरे से परे
पूर्व निर्धारित अनुभूतियों की पकड़ से बाहर
अपने गडमड एकांत के साथ
अनछुई पगडंडियों पर
चलते चलते
जब
पूरी आश्वस्ति से
गति के साथ तन्मय होने का परिचय जाना
किसी सूक्ष्म जगत से दिखाई दिया नई कविता का
चुपचाप उतर आना
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सितम्बर 27, 2012
3 comments:
फिर मैं ढूँढने निकला
उस जादूगर को
जिसके झोले में से
निकल आती
एक नई कविता
हर दिन मेरे लिए
आपकी कवितायें सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण होती हैं ......,प्रभु से प्रार्थना है वो जादूगर आपको मिल जाये और आप पुनः प्रतिदिन लिखें नई कविता ...
शुभकामनायें ...!!
बेहद उम्दा चिन्तन
शब्दों का खुलकर जीना हो..
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