(फोटो- अनिल पुरोहित, जोधपुर ) |
1
कहाँ से आती है
यह सघन उदासीनता सी,
पके फल की तरह
सारे सन्दर्भों से
अलग होने की अकुलाहट
अपने उस परिचय को
घोषित कर देने की अधीरता
जो
पार है हर परिधि के
2
और फिर यह संशय सा भी
ठहरा है देहरी पर
की
बोध इस परिचय का
बदल न जाए
घोषणा के बाद
3
सत्य
यूं तो मुझे नित्य निडर बनाता है
पर
सत्य से विलग होने का भय
न जाने कहाँ से आता है
4
लो
अनाव्रत होकर
शब्द नदी में करते हुए स्नान
कर लिया
रोम-रोम में
अनंत का आव्हान
घोषणा अपने परिचय की नहीं
बस उसकी महिमा की
कण कण में मुखरित है
जिसके सृजन- वैभव का गान
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
25 अगस्त 2012
6 comments:
सत्य निडर बनाता है सत्यमार्ग में और प्रवृत्त होने के लिये।
dhanywaad Praveenjee Maharaj
NICE PRESENTATION.THANKS
संघ भाजपा -मुस्लिम हितैषी :विचित्र किन्तु सत्य
बेहद उम्दा विचार रचना ....सादर
wah shbdon ka aesa chamatkar prashansha ke kabil hai
bahut bahut badhai
rachana srivastava
सत्य यूं तो
मुझे नित्य निडर बनाता है
पर
सत्य से विलग होने का
भय
न जाने कहाँ से आता है
अज्ञान का तम जब मन बुद्धि
पर छा जाता है,सत्य से विलग
होने का भय तभी तो आ जाता है.
अज्ञान तिमिरांधस्य ज्ञानांजनशलाकया
चक्षुरुन्मीलितं येन,तस्मैश्री गुरवे नम:
गुरु कृपा है आपपर,फिर आपको कैसा
भय,अशोक भाई.
बहुत अच्छी लगी आपकी घोषणा
अपने अनुपम परिचय की.
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