Thursday, July 26, 2012

अक्षय हरियाली



लिखते लिखते 
शब्द श्रंखला
जब सूखी टहनी की तरह 
फलान्वित होने की बाट जोहती 
दिखाई देती है 

शब्द से दूर जाकर 
घने निर्वात में 
घरौंदा बनाता 

फिर 
चुप की चीख से 
घबरा कर 
लौट आता 
शब्दों के सुरक्षित घेरे में 

और 
करता 
प्रतीक्षा 
उस किरण की 
जिसके अनुग्रह स्पर्श से 
रसीली हो जाए 
शब्द श्रंखला 
और 
मन में 
गुनगुनाये 
अक्षय हरियाली 


अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
26 जुलाई 2012 

8 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

अनवरत स्रोत, समृद्धता का..

sunil purohit said...

कर आराधना शब्दों को चुन सजाया ,संवारा है आपने,और इस तरह शब्दों में निहित शक्ति की जीवन्तता का परिचय दिया है आपने |

Rakesh Kumar said...

और
करता
प्रतीक्षा
उस किरण की
जिसके अनुग्रह स्पर्श से
रसीली हो जाए
शब्द श्रंखला
और
मन में
गुनगुनाये
अक्षय हरियाली

उस किरण की प्रतीक्षा
में ही जीवन व्यतीत हो जाए
तो वह भी अक्षय हरियाली
से कम नही.काश!ऐसा हो पाए.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना, बधाई.

Rakesh Kumar said...

अशोक जी,श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ.

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

अच्छी रचना
गंभीर अर्थ लिए

बहुत सुंदर

कविता रावत said...

bahut sundar rachna.
Rakesh ji ke blog post se aap tak puchna bahut achha laga.
Shrikrishna Janamstmi ki haardik shubhkamnayen!

Rajesh Kumari said...

अशोक जी आज यू ट्यूब में आपका विडिओ देखा राकेश जी के ब्लॉग के माध्यम से आपके ब्लॉग से जुडी हूँ बहुत अच्छा लगा यहाँ आकर एक अच्छी कविता पढने को मिली श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बधाई मिलते रहेंगे

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...