लिखते लिखते
शब्द श्रंखला
जब सूखी टहनी की तरह
जब सूखी टहनी की तरह
फलान्वित होने की बाट जोहती
दिखाई देती है
शब्द से दूर जाकर
घने निर्वात में
घरौंदा बनाता
फिर
चुप की चीख से
घबरा कर
लौट आता
शब्दों के सुरक्षित घेरे में
और
करता
प्रतीक्षा
उस किरण की
जिसके अनुग्रह स्पर्श से
रसीली हो जाए
शब्द श्रंखला
और
मन में
गुनगुनाये
अक्षय हरियाली
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
26 जुलाई 2012
8 comments:
अनवरत स्रोत, समृद्धता का..
कर आराधना शब्दों को चुन सजाया ,संवारा है आपने,और इस तरह शब्दों में निहित शक्ति की जीवन्तता का परिचय दिया है आपने |
और
करता
प्रतीक्षा
उस किरण की
जिसके अनुग्रह स्पर्श से
रसीली हो जाए
शब्द श्रंखला
और
मन में
गुनगुनाये
अक्षय हरियाली
उस किरण की प्रतीक्षा
में ही जीवन व्यतीत हो जाए
तो वह भी अक्षय हरियाली
से कम नही.काश!ऐसा हो पाए.
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना, बधाई.
अशोक जी,श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ.
अच्छी रचना
गंभीर अर्थ लिए
बहुत सुंदर
bahut sundar rachna.
Rakesh ji ke blog post se aap tak puchna bahut achha laga.
Shrikrishna Janamstmi ki haardik shubhkamnayen!
अशोक जी आज यू ट्यूब में आपका विडिओ देखा राकेश जी के ब्लॉग के माध्यम से आपके ब्लॉग से जुडी हूँ बहुत अच्छा लगा यहाँ आकर एक अच्छी कविता पढने को मिली श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बधाई मिलते रहेंगे
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