Sunday, April 15, 2012

इसमें कोई संशय नहीं


अक्सर
सब कुछ
वैसा ही तो नहीं होता
की
समा जाए हमारी अपेक्षा के आकार में

अक्सर
एक अदृश्य सर्प
लटपटा जाता है
कर्मक्षेत्र की देहरी पर

संशय की फुंफकार से
छुड़ा देना चाहता हो जैसे
हमारा आगे बढना

अनमनेपन में
कई बार
पलट भी जाते हैं हम

किसी दूसरी सीधी पर चढ़ने का
गुनगुना संकल्प लिए
स्वयं को सांत्वना देते


इस बार
मिटा ही देना है
इस मिटे हुए सर्प को
अपनी चेतना के 
अमृतमय उजियार से

अपेक्षा के साथ
सम्माहित कर
गुरु चरण रज
पावन पथ पर
अदृश्य सर्प भी
संशय नहीं
श्रद्धा वर्धक ही होता है
इसमें कोई संशय नहीं 


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१५ अप्रैल २०१२ 

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

कर्मों पर सतत पहरे हैं..

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

क्या उत्कृष्ट रचनाएं है...
सादर बधाई.

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