इस क्षण
नए सिरे से
पोंछ कर
चेतना से
तुम्हारे स्वरुप को धुंधला करते
सभी मैले चिन्ह
लो
नव शिशु सा
सरल, सहज प्रसन्नता के
मंगल माधुर्य में भीगा
अब तुम्हें
देख कर
मुस्कुराता
खिलखिलाता हूँ जब
लगता है
पा लिया है
परम प्रार्थना का
तुम भी
करने लगे हो
गान अपना
मेरे स्वर में
अपना स्वर मिला कर
जैसे
मेरी तुतलाती बोली की निश्छलता ने
छल लिया हो तुम्हें ही
ओ विराट !
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१६ अप्रैल २०१२
1 comment:
ईश्वर के निकट का अनुभव..
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