सूर्योदय से पहले
ढूंढ रहा हूँ
अपना रिश्ता
नए दिन के सूरज के साथ
मौन में उतर कर
शब्द जहाँ
मौन के साथ
एक मेक हो जाते हैं
पहले तो तुम
मिला करते थे
मुझे वहां
अब भी
निशब्द आवाज़ दे रहा हूँ
तुमको
इस दृश्य जगत से परे के
क्षेत्र से
और
सुन रहा होऊँ
अचेतन में
तुम्हारे आगमन की
आश्वस्ति उन्ड़ेलती आहटें
अब
यह भी स्मरण हुआ
की
अपना रूप छोड़े बिना
संभव नहीं होगा तुमसे मिलना
तो शायद
यह अपने रूप का मोह ही है
जो
छुपा देता है
मेरा रिश्ता
नए दिन के सूरज के साथ
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२४ मार्च २०१२
2 comments:
सूर्य से जगत का शाश्वत संबंध है।
अब
यह भी स्मरण हुआ
की
अपना रूप छोड़े बिना
संभव नहीं होगा तुमसे मिलना
नाम रूप का छोडना,असल स्वरुप
में रमण करना क्या उसी से मिलन है?
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