Saturday, March 24, 2012

अपना रिश्ता नए दिन के सूरज के साथ

सूर्योदय से पहले
ढूंढ रहा हूँ
अपना रिश्ता
नए दिन के सूरज के साथ

मौन में उतर कर
शब्द जहाँ
मौन के साथ 
एक मेक हो  जाते हैं

पहले तो तुम
मिला करते थे
मुझे वहां

अब भी
निशब्द  आवाज़ दे रहा हूँ
तुमको
इस दृश्य जगत से परे के
क्षेत्र से

और
सुन रहा होऊँ
अचेतन में
तुम्हारे आगमन की
आश्वस्ति उन्ड़ेलती आहटें   

अब
यह भी स्मरण हुआ
की
अपना रूप छोड़े बिना
  संभव नहीं होगा तुमसे मिलना 

तो शायद 
 यह अपने रूप का मोह ही है
जो
छुपा देता है 
मेरा रिश्ता
नए दिन के सूरज के साथ



अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२४ मार्च २०१२ 

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सूर्य से जगत का शाश्वत संबंध है।

Rakesh Kumar said...

अब
यह भी स्मरण हुआ
की
अपना रूप छोड़े बिना
संभव नहीं होगा तुमसे मिलना

नाम रूप का छोडना,असल स्वरुप
में रमण करना क्या उसी से मिलन है?

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