नए सिरे से
अपना जीवन
लिखने का अभ्यास करो
अब तक
जो ना कर पाए
कर पाओगे, विश्वास करो
शब्द सखा हैं
इनके बल से
संबल पाकर उठ जाओ
जो सब कुछ है
जिससे सब
बस उससे ही आस करो
२
अपनेपन की
परिभाषा का
नयापाठ सिखलाये है
काल कलुष का
रंग दिखा कर
नया पाठ सिखलाये है
हर पंछी का
राग निराला
कौन किसे सुन पाए है
साथ कोइ
कल हो या न हो
सूरज कल फिर आये है
---- अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
११ फरवरी 2012
2 comments:
नित नया गीत लिखता हूँ
जगत की प्रीत लिखता हूँ,
बहुत सुन्दर और प्रेरक वचन.
आभार,अशोक जी.
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