Saturday, February 11, 2012

कौन किसे सुन पाए है



नए सिरे से
अपना जीवन
लिखने का अभ्यास करो
अब तक
जो ना कर पाए
कर पाओगे, विश्वास करो
शब्द सखा हैं
इनके बल से
संबल पाकर उठ जाओ
जो सब कुछ है
जिससे सब
बस उससे ही आस करो


अपनेपन की 
परिभाषा का
नयापाठ सिखलाये है
काल कलुष का
रंग दिखा कर
नया पाठ सिखलाये है
हर पंछी का
राग निराला
कौन किसे सुन पाए है
साथ कोइ
कल हो या न हो
सूरज कल फिर आये है

                                                                      ---- अशोक व्यास
                                                                      न्यूयार्क, अमेरिका 
                                                                         ११ फरवरी 2012

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

नित नया गीत लिखता हूँ
जगत की प्रीत लिखता हूँ,

Rakesh Kumar said...

बहुत सुन्दर और प्रेरक वचन.
आभार,अशोक जी.

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