सुबह सुबह
पावन गंगा में
डुबकी लगा कर
श्रद्धा, आनंद, स्फूर्ति जगाने के साथ-साथ
शाश्वत से चिर सम्बन्ध की स्मृति-सौरभ में
तन्मय हो जाने
के मंगल क्रम की तरह
वह
हर दिन
भागीरथ की तरह
आव्हान करता है
अंतस-गंगा का
और फिर
भीग कर
अमृतमय प्रवाह में
छोड़ देता है
अपनी पहचान के
छोटे छोटे चिन्ह
कविता उसके लिए
स्वयं को
छोड़ कर
स्वयं को
पा लेने का
एक अद्वितीय माध्यम है
और
किसी किसी क्षण
जब वह
खोने-पाने से परे
स्वयं एक कविता हो जाता है
विराट के श्री चरणों में अर्पित हो पाता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
११ जन २०१२
1 comment:
आपकी भावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति
पर मै कुछ भी कहने में असमर्थ हूँ.
बस मग्न हो रहा हूँ पढ़ पढ़ कर.
प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार.
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