न जाने कैसे
छिड़ जाता है संतुलन
इन्द्र के पद से गिर जाता है राजा नहुष
कामना शची की हो
या
नई शती वाली पहचान की
कभी कभी
किसी अनाम क्षण में
डंस लेता है
सांप सीढी का सांप
पतन मन का
हुए बिना ही
किसी ऊंचाई से उतरने के
अपरिभाषेय अनुभूति
जकड लेती है जब
जाग्रत होता है
स्वर्णिम शिखर का
तीव्र आर्त स्मरण
शायद इसी तरह
झूले झुला-झुला कर
अपनी तरफ
ध्यान बढाता है
वह एक सर्वसाक्षी चैतन्य
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२२ दिसंबर २०११
1 comment:
कुछ अन्दर अन्दर जलता है,
जब समय का पहिया चलता है।
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