उस दिन
पेड़ की खोह में
धर कर पोटली कविता की
उतरा था
नदी में जब
नहीं जानता था
लौटते हुए
हर सांस में
प्रस्फुटित हो जायेगी कविता
और
भूल कर पेड़ की खोह में छुपी कविता
वह
पेड़ों की शाखाओं को
करने लगेगा अलंकृत
चिरजीवी कविताओं के उजियारे से
अब ऐसा सृजनशील वन हो गया है
उसका मन
जहाँ वृन्दावन के पवन के हर झोंके से
अगणित कवितायेँ दिखाई देती हैं
और
इन सब कविताओं के बीच
आज भी
रास रचाता है
वह काव्य पुरुष
जिसका नाम कृष्ण है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२५ दिसंबर २०११
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और
इन सब कविताओं के बीच
आज भी
रास रचाता है
वह काव्य पुरुष
जिसका नाम कृष्ण है
यही तो उसकी लीला है :):)
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