ठण्ड से बचने के लिए
समेट लेना अपने को
और बात है
यूँ छूने पर
कछुआ भी
समेट लेता है अंग अपने
पर
उसके सिमटने में
किसी बाहरी संवेदना का प्रभाव नहीं था
वह
सिमट कर संकलित हो रहा था
सघन हो रहा था
और
अपनी निश्चलता में
सुन रहा था
एक स्पंद
स्पंद
जो सुन्दरता के साथ
छिटका रहा था
गहन मौन का
एक शांत साम्राज्य
स्पंद
जिसमें मुखरित था
सारे जगत से
ऐसा लगाव
जो बाहर की किसी भी क्रिया द्वारा संभव ही नहीं है
वह
सिमट कर आलिंगन कर रहा था
उस विस्तार का
जो दीखता नहीं पर है
और उनके द्वारा ही महसूस किया जाता है
जो गति में ठहराव
और
ठहराव में गति देख पाते हैं
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१६ दिसंबर २०११
2 comments:
उनके द्वारा ही महसूस किया जाता है जो गति में ठहराव और ठहराव में गति देख पाते हैं
अच्छा है 'शांत साम्राज्य'
पर इच्छा से अशांत हो जाता है.
मैं तो अब निराश हो चला हूँ जी.
क्या करूं आपके दर्शन की इच्छा जो है.
बहुत सुंदर कविता !
आभार !!
Post a Comment