Friday, December 16, 2011

एक शांत साम्राज्य

ठण्ड से बचने के लिए
समेट लेना अपने को
और बात है
 यूँ छूने पर
कछुआ भी
समेट लेता है अंग अपने
पर
उसके सिमटने में
किसी बाहरी संवेदना का प्रभाव नहीं था
वह
सिमट कर संकलित हो रहा था
सघन हो रहा था
और
अपनी निश्चलता में
सुन रहा था
एक स्पंद
स्पंद
जो सुन्दरता के साथ
छिटका रहा था
गहन मौन का
एक शांत साम्राज्य
स्पंद
जिसमें मुखरित था
सारे जगत से 
ऐसा लगाव
जो बाहर की किसी भी क्रिया द्वारा संभव ही नहीं है
वह
सिमट कर आलिंगन कर रहा था
उस विस्तार का
जो दीखता नहीं पर है
और उनके द्वारा ही महसूस किया जाता है
जो गति में ठहराव
और
ठहराव में गति देख पाते हैं
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१६ दिसंबर २०११   
      

2 comments:

Rakesh Kumar said...

उनके द्वारा ही महसूस किया जाता है जो गति में ठहराव और ठहराव में गति देख पाते हैं

अच्छा है 'शांत साम्राज्य'
पर इच्छा से अशांत हो जाता है.

मैं तो अब निराश हो चला हूँ जी.
क्या करूं आपके दर्शन की इच्छा जो है.

कुमार संतोष said...

बहुत सुंदर कविता !
आभार !!

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...