उसने
बिना किसी विचार के
बस खोल दिया अपना आप
उंडेल दिया आत्मरस
देखने दिखाने के लिए
अनंत का सौन्दर्य
निशब्द फ़ैल गया
केंद्र जो था
नित्य परिवर्तनशील
अपनी सहज, स्थिर आभा के साथ
छू गया धरती- आकाश
अशोक व्यास
देक ८ २०११
है कुछ बात दिखती नहीं जो पर करती है असर ऐसी की जो दीखता है इसी से होता मुखर है कुछ बात जिसे बनाने बैठता दिन -...
2 comments:
बहुत अच्छा लगता है धरती आकाश का छूना.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
आप मेरी नई पोस्ट पर अभी तक क्यूँ नही आये,अशोक भाई.
हनुमान लीला का कुछ रहस्य आप भी प्रकट
कीजियेगा न.
प्रकाश में नहाया सकल विश्व।
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