Monday, December 5, 2011

एक अमिट पहचान

 
 
किसी को भी
ठीक से हम तब देख पाते हैं
जब भागना छोड़ कर 
थोडा ठहर जाते हैं     


 
कई बार
एक के बाद दूसरी क्रिया
जो हम
स्वयं तक पहुँचने के लिए सजाते हैं
उसे पूरा कर पाने के संतोष
से इस तरह बंध जाते हैं 
कि 
अपनी स्वतंत्रता को भूल जाते हैं
शायद इसीलिए
अच्छे खासे मनुष्य
कोल्हू के बैल कहलाते हैं
 
 
नूतनता के आगमन के लिए
जाने हुए को
कुछ इस तरह अपनाना होता है
की 
नियम अपना कर 
जो ढर्रा बनता है
उसे कभी कभी स्वयं ही मिटाना होता है
 
 
शायद  इसीलिये
सृष्टि में
स्थिति के बाद लय का
नित्य स्थान है 
इस तरह 
 मिटने वाले में
झिलमिलाती एक
अमिट पहचान है 


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
५ दिसंबर 2011 

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

इन दोनों का क्रम अनवरत है।

Anupama Tripathi said...

इस तरह
मिटने वाले में
झिलमिलाती एक
अमिट पहचान है

इसी पहचान की खातिर मिट जाता है जीवन ..और ये पहचान मिलती भी जीवन पूर्ण होने के बाद ही है ...

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