किसी को भी
ठीक से हम तब देख पाते हैं
जब भागना छोड़ कर
थोडा ठहर जाते हैं
कई बार
एक के बाद दूसरी क्रिया
जो हम
स्वयं तक पहुँचने के लिए सजाते हैं
उसे पूरा कर पाने के संतोष
से इस तरह बंध जाते हैं
कि
अपनी स्वतंत्रता को भूल जाते हैं
शायद इसीलिए
अच्छे खासे मनुष्य
कोल्हू के बैल कहलाते हैं
३
नूतनता के आगमन के लिए
जाने हुए को
कुछ इस तरह अपनाना होता है
की
नियम अपना कर
जो ढर्रा बनता है
उसे कभी कभी स्वयं ही मिटाना होता है
४
शायद इसीलिये
सृष्टि में
स्थिति के बाद लय का
नित्य स्थान है
इस तरह
मिटने वाले में
झिलमिलाती एक
अमिट पहचान है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
५ दिसंबर 2011
2 comments:
इन दोनों का क्रम अनवरत है।
इस तरह
मिटने वाले में
झिलमिलाती एक
अमिट पहचान है
इसी पहचान की खातिर मिट जाता है जीवन ..और ये पहचान मिलती भी जीवन पूर्ण होने के बाद ही है ...
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