Saturday, December 3, 2011

प्रेम भाव से मंगल-मंगल


 
एक अचल है कितना चंचल
उसे देख कर, सब कुछ मंगल
 
जान जान कर बिसराए जग
प्रेम भाव से मंगल-मंगल 

यूँ ही मान कर बैठ न जाना
बड़ा अनूठा है हर एक पल
 
 
उज्जवल हर पल
हर पल उज्जवल
 
गुरु चरणों का आश्रय लेकर
वृन्दावन है मन का जंगल
 
कालियमर्दन के प्रताप से
करूणामयी काल की कलकल    
 
 
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
३ दिसंबर २०११   
 
 
 
 
  


 
 

7 comments:

कुमार संतोष said...

Sunder rachna.

प्रवीण पाण्डेय said...

गुरु चरणों में सब पा जाना..

Arun sathi said...

bahut sargarbhit..

Jeevan Pushp said...

उज्जवल हर पल
हर पल उज्जवल

गुरु चरणों का आश्रय लेकर
वृन्दावन है मन का जंगल

कालियमर्दन के प्रताप से
करूणामयी काल की कलकल


कितना सुन्दर लिखा है आपने ...!
मेरे पोस्ट पे आपका इन्तेजार रहेगा!

Anamikaghatak said...

bahut hi badhiya prastuti

Anupama Tripathi said...

गुरु चरणों का आश्रय लेकर
वृन्दावन है मन का जंगल

बिन सतगुरु आपनो नहीं कोई ..
जो यह राह बतावे ..

नैहरवा ..हमका न भावे ..

Amrita Tanmay said...

सुन्दर लिखा है |

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