सूर्योदय के साथ
नए दिन के आगमन की खबर तो मिल जाती है
पर सूर्योदय के होने का मर्म
हर दिन मेरी माँ मुझे बतलाती है
माँ ना जाने कैसे
किरणों के बीच में चलती परियो से मेरा परिचय करवाती है
मेरे भीतर
अदृश्य जगत की संभावनाएं दिखा कर मुझे विस्मित कर जाती है
माँ वहां तक ही नहीं
जहां वो पहली बार इस जगत से सम्बंधित होने का भाव मुझमें जगाती है
माँ वहां तक है भीतर मेरे
जहाँ तक साँसों की ये श्रंखला चलती जाती है
या शायद उसके बाद भी
माँ ही साथ निभाती है
और जिसे-जिसे माँ की याद आती है
उसे माँ मिल जाती है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१ दिसंबर २०११
4 comments:
माँ वहां तक है भीतर मेरे
जहाँ तक साँसों की ये श्रंखला चलती जाती है
या शायद उसके बाद भी
माँ ही साथ निभाती है
और जिसे-जिसे माँ की याद आती है
उसे माँ मिल जाती है
तभी तो पुकारते हैं
'त्वमेव माता च पिता त्वमेव ........'
आप पुकारिए बस.
वही माँ, वही पिता,बंधू ,सखा आदि
हर रूप में मिल जाने को तत्पर है.
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर पर आपके सुविचार अपेक्षित हैं.
माँ हमेशा साथ होती है ...सुंदर रचना
माँ शब्द ही माँ जैसा है, ईश्वर जैसा।
साधु-साधु
अतिसुन्दर
मर्मस्पर्सी
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