Monday, November 28, 2011

सौम्य सुन्दरता


कैसे इतना सारा सौंदर्य उंडेल देता है दिन
देखो उजले आकाश से
उतरता यह सुनहरापन
पेड़ों पर
सड़क पर
हवा के रेशे रेशे में
घुल कर
बोल रहा है
मौन किसका
अबकी बार
आनंद के आगमन पर
नहीं लगाई 
कोइ प्रदर्शनी  उसने
बस तिरता रहा
गंगा की लहरों पर
आँखें मूंदे
पूरी सजगता के साथ
भरता रहा अंतस में
अनंत की आशीष
और
उसे केंद्र बना कर
फैलता रहा आनंद का
नूतन भाव
खुलता रहा
कण कण में
सौन्दर्य का एक नया संगीत
इस बार वह जान पाया 
संगीत वह है
जो एक कर देता है
बाहर और भीतर को
कुछ ऐसे
की एक अनाम क्षण में
तिरोहित हो जाता है
अपने अलगाव का भाव
बस
वह रहता है
एक वह
जिसके मौन से 
प्रकटित होता
सुनहरापन,
फैला देता हर दिशा में
सौम्य सुन्दरता 


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
 २८ नवम्बर २०११  
     

3 comments:

Prakash Jain said...

Adbhut....Behtareen

Prakriti ka varnan behad sundar laga..

www.poeticprakash.com

Rakesh Kumar said...

मेरे दिल में मानो टन-न- न से घंटी बजी --
पहली नजर का प्यार ---

यह पंक्तियाँ किसी पोस्ट से कापी की थीं.
पर न जाने क्यूँ यहाँ इन्हें पेस्ट कर प्रस्तुत करना मुझे अच्छा लग रहा है.आपको कैसा लगा?

मेरे ब्लॉग पर आने के लिए कुछ समय निकालिएगा जी.

कुमार संतोष said...

Sunder rachna.....
Subhkaamnayen...!

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...