नरम घास की नोक से
ओस की बूँद
अपने ह्रदय पर लगा कर
शीतलता का नया श्रृंगार कर
उसे लगा
आकाश मुस्कुराया
और
उसके चेहरे पर
परिधियों की पहचान नकारती मुस्कान
उमड़ आई
कुछ ऐसे
जैसे
छिटक गया हो
सूरज का उजाला
चारों दिशाओं में
२
उड़ती चिड़िया
उड़ते उड़ते
किसी निश्छल, तृप्त क्षण में
नृत्य सा
करती है
गगन मंच पर जैसे
पवन के आलिंगन से
झूम झूम
अपनी कृतकृत्यता गाती हैं
जैसे फ़ैली हुई शाखाएं
या फिर
नन्हा बालक
अपनी ही मस्ती में
रच लेता है
खेल संसार
और
परिचित वस्तुओं में
उद्घाटित कर देता है
एक नया आयाम
कुछ ऐसे ही
अपनी वस्त्र भीगने से बचाती
धीरे धीरे पग धरती
सुन्दरी की तरह
पार कर
बरसाती नदी
उसके मन ने
लांघ कर सीमाबद्ध सन्दर्भ
अनंत के आँगन में
कुछ देर के लिए
छोड़ कर
अपना आकार
कर दिया उजागर
असीम आनंद
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२७ नवम्बर २०११
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