(बाबा सत्य नारायण मौर्य द्वारा बनाये गए चित्र की फोटो) |
ॐ
सरल बात कर, सरस साथ कर
छोड़ निशा को, अब प्रभात कर
२
अच्छा होने की जिद भी बढ़ा देती है बुराई
सत्य से अधिक लुभा देती उसकी परछाई
३
बड़े शहर में छोटी बातों का सुख खो जाता है
अपने लिए भी आदमी पराया हो जाता है
४
एक पल सहसा घेर लेती है
सारे ज़माने की चुप्पी
जब मुझे
दिखाई दे जाते हैं
जाने अनजाने चेहरे
इतने सारे
और फिर
सबके साथ मिल कर
करता हूँ प्रार्थना
गति के लिए
रुके रुके भी
होता तो होगा जीवन
पर
न जाने क्यूं
चले बिना चैन आता नहीं
कहीं न कहीं
यूँ लगता है
रुकना चुक जाना है
और
शेष होने को तैयार नहीं अभी तक
गति का गान फिर लहलहाया है
एक नया सपना देहरी तक आया है
और इस नई थपथपाहट के बहाने
मैंने चुप्पी के महफ़िल को मिटाया है
अशोक व्यास
सोमवार,
१४ नवम्बर २०११
3 comments:
गति के साथ मति बनी रहे।
सरल मन का बहाव थमना चुक ही जाना है!
सुन्दर !
अच्छा होने की जिद भी बढ़ा देती है बुराई
सत्य से अधिक लुभा देती उसकी परछाई
गहन एवं विचारणीय.....कुछ चिंतन देता हुआ सा ....
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