आँख मूँद कर साथ निभाना अच्छा लगता है
जिसका सब, उसका हो जाना अच्छा लगता है
कभी छोड़ कर जिसको, जाने की चाहत जागी
आज देखिये, वही ज़माना अच्छा लगता है
मैं अपनी चुप्पी में किस्से बुनता रहता था
अब किस्सों को चुप कर पाना अच्छा लगता है
सपनो की आहट सुन कर फिर सोने का नाटक
सच का खेल जान ना पाना अच्छा लगता है
जिसकी याद सुनहरे रस्ते दिखलाती जाए
मेरे नाम उसका ख़त आना अच्छा लगता है
एक तलाश सी साथ चले है यूँ तो हर रस्ते
मगर ठहर कर गुम हो जाना अच्छा लगता है
नया नया लगता है जिसके छूने से सब कुछ
अब भी वो एक दोस्त पुराना अच्छा लगता है
वाह वाह करते हैं जिसके आने पर सब लोग
उसको अपने गले लगाना अच्छा लगता है
उसकी हर एक बात मुझे रोशन कर जाती है
जान बूझ कर सब दोहराना अच्छा लगता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
शनिवार, १२ नवम्बर 2011
5 comments:
जिसकी याद सुनहरे रस्ते दिखलाती जाए
मेरे नाम उसका ख़त आना अच्छा लगता है
आपकी शायरी गजब की है जी.
आपके खत की इंतजार में.
एक तलाश सी साथ चले है यूँ तो हर रस्ते
मगर ठहर कर गुम हो जाना अच्छा लगता है
बहुत सुंदर भाव हैं आपकी इस ग़ज़ल में ...
देखिये न, अच्छा भी लगता है और करते भी रहते हैं।
umda shayari.
बहुत लाजबाब प्रस्तुति ..
बधाई हो !
मेरे ब्लॉग पे आपका हार्दिक स्वागत है ..!
Post a Comment