Thursday, November 10, 2011

जिससे सुरभित हैं शब्द












शब्द नहीं
सौरभ है
अक्षरों के बीच
उपस्थिति उसकी
     जगा रही है 
भाव एक अनूठा
आकर्षण में खिंचाव नहीं
लगाव है 
एक समयातीत
मौन में
इस बार 
यूँ खोल दिया उसने
विस्तार अपना
जैसे
लौट आया हो
अपने ही घर में
माधुर्य गुंजरित है
कण कण में
यह जो रसीला
इसका आस्वादन करने
कौन किसे बुलाये
सहज है
आना-जाना
ठहरना और ठहरे ठहरे
उस गति के साथ एक मेक हो जाना
जिससे 
सुरभित हैं शब्द
और
हर अक्षर के बीच से
झांकती है सारी सृष्टि
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
          १० नवम्बर 2011             

8 comments:

Anupama Tripathi said...

शब्द नहीं
सौरभ है
अक्षरों के बीच
उपस्थिति उसकी
जगा रही है
भाव एक अनूठा

प्रकृति और प्रभु से सरोकार करती हुई ...आल्हादित करती हुई ....सकारात्मकता का प्रसाद बाँटती सुंदर रचना ..

प्रवीण पाण्डेय said...

ईश्वर ही अक्षर है।

Anupama Tripathi said...

आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है कल शनिवार (12-11-2011)को नयी-पुरानी हलचल पर .....कृपया अवश्य पधारें और समय निकल कर अपने अमूल्य विचारों से हमें अवगत कराएँ.धन्यवाद|

Rakesh Kumar said...

सुन्दर सुन्दर अनुपम प्रस्तुति.
अनुपमा जी की हलचल का नगीना बनी.
बहुत अच्छा लगा.

'सुरभित शब्द'सृष्टि
का साक्षात्कार करा रहें हैं.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

शब्द संसार अच्छा लगा।

Yashwant R. B. Mathur said...

बेहतरीन।

सादर

अनुपमा पाठक said...

अक्षर ब्रह्म है!
सुंदर अभिव्यक्ति!

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

सुन्दर रचना....
सादर...

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