यह जो बीच का क्षेत्र है
शांति और अशांति के बीच
सृजन और विध्वंश के बीच
स्वयं को पाने और खोने के बीच
यहाँ
इस अज्ञात स्थल पर
बैठ कर
देख रहा हूँ
दुनियां के दो चेहरे
जिनमें मेरे कई चेहरे झिलमिलाते हैं
अपने आप से किये गए
सच्चे-झूठे वादों को छोड़ कर
यहीं से
लगा ली है
छलांग
अनंत की गोद में
सब कुछ छोड़ कर
सब कुछ लेकर
इस क्षण
यह
जो 'शून्य' हुआ हूँ मैं
इसमें भी
शेष है
स्पर्श पूर्णता के आलोक का
इस स्पर्श से
संभव है
फिर जाग जाए
वह संसार
जिसकी कल्पना धमकती रही
मेरी धमनियों में
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
८ नवम्बर 2011
2 comments:
बहुत ही सुन्दर।
अपने आप से किये गए
सच्चे-झूठे वादों को छोड़ कर
यहीं से
लगा ली है
छलांग
अनंत की गोद में
अभूतपूर्व छलांग है आपकी.
अनन्त की गोद ही तो सर्वोच्च है.
मेरी भी सुनवाई हो,अशोक जी.
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