Sunday, November 6, 2011

एकाकीपन लेकर ही संगम आया



फिर तुझको ख़त लिखने का मौसम आया
पर कागज़ लफ़्ज़ों से हरदम कम पाया 

उसके आँखों के रस्ते में फिसलन थी 
चोट लगी थी जहाँ, वहीं मरहम पाया

याद जगा कर, सोने की मोहलत माँगी
सपनो में भी जो पाया, कम कम पाया 

टकराने के बाद हुआ अक्सर ऐसा
एकाकीपन लेकर ही संगम आया

बात तुम्हारी तुमसे कहने बैठा था
ना जाने, आँखों को क्यों कर नम पाया


अब आँगन में कोई चिड़िया नहीं रही
ये बहेलिया काल, गज़ब सरगम लाया


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका 
६ नवम्बर २०११





 
 


     

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

न जाने क्या रंग दिखेगा समय का।

Anupama Tripathi said...

बात तुम्हारी तुमसे कहने बैठा था
ना जाने, आँखों को क्यों कर नम पाया

है धूप कहीं छाया ...ये ज़िन्दगी की रीत .....
यही रीत निभाती हुई रचना ....

Rakesh Kumar said...

अब आँगन में कोई चिड़िया नहीं रही
ये बहेलिया काल, गज़ब सरगम लाया

बहुत मार्मिक और हृदयस्पर्शी प्रस्तुति है.
आज आपकी रचना अलग सी लग रही है.

बिना चिड़ियों के सरगम ..?
लगाता है सर्वत्र मौन छा गया हो जैसे.

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