Tuesday, November 1, 2011

एकाकी मौन


 1
उसने सुबह सुबह
किरणों से दोस्ती कर
ताज़ा गुलाब जब पेश किया
सूरज को

सूरज ने मुस्कुरा कर
लौटा दिए
सहस्त्र कमल
उसके मानस में


खिले कमल सा
प्रफुल्लित मन लेकर
गुरु गान करता
वह निकला
जिन जिन गलियों से
स्रवित हुआ अमृत
हर घर की देहरी से


विस्तार इतना 
जो दीखता रहा उसे
छुपा था
उसकी आँखों में
कहते रहे लोग उसे
और वह 
स्वतः स्फूर्त आविष्कार के लिए
सराहित होता
एकाकी मौन की शरण लेने
प्रविष्ट हो गया
अरण्य में
अनायास फिर से



अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका

१ नवम्बर २०११                 

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

पहली किरण का संवाद।

वाणी गीत said...

सूर्य को अर्पित ताज़ा गुलाब लौटे कमल बन कर ...
और फिर एकाकी मौन ...
सभी बेहद खूबसूरत!

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...