उसने कभी
छोड़ा ही नहीं था पिंजरा
नहीं जाना था
परिधि के परे पाँव रखने का अनुभव
और
पिंजरे से परे के जीवन को अपना मान लेने में
आज भी
संकोच था उसे
२
वह
मान ही नहीं पा रहा था
की दीवार के पार जो संसार है
उस विस्तार से भी कोइ सम्बन्ध है उसका
नहीं सोच पा रहा था
आकाश भी उसकी ऊंचाई की अंतिम सीमा नहीं है
पर
आज धीरे धीरे
अंतर्मन में उतरी
एक दिव्य किरण ने
उसे पार करवा ही दिया
उन सभी परतों के
जिनके भीतर
सिमट सिमट कर
उसकी स्मृति से मिटने लगा था
अनंत का आलिंगन
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१९ अक्टूबर २०११
1 comment:
तोड़ बंधन को समय के पार जाना है।
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