और तब
जब हर लहर
ठहर जाती है
स्थिर सागर से
आँख मिला कर
गंभीर हुआ मन
देख नहीं पाता
चिन्ह
किसी तरंग का,
सूनेपन की तोह लेता
मन
जला लेता है
नया दीपक
तुम्हारे नाम का
२
घाटी में
सहमे हुए फूलों को
नेहला दिया उसने
क्षितिज से उतारे
नए झरने में,
फूंक दिया
हवा में
उमंगों का नया गीत,
बाहें फैला कर
आतुर है
उड़ उड़ कर
अपनी अक्षय मस्ती में
झूम लेने को
तत्काल
वह
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
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