(स्वामी ज्योतिर्मयानंद जी, फोटो- अशोक व्यास) |
क्या सभी को होता है
ये अनुभव
चलते चलते
चलने और उड़ने के अंतर का मिट जाना
और कभी
धरती को पांवों के नीचे ना पाकर
घबरा जाना
क्या सभी को लगता है ऐसा
कि
जो दिखता है
उतना ही नहीं है जीवन,
और अनदेखे को
देख लेना चाहता हो मन,
क्या वह सब
जो होता है
सबके साथ
किसी स्तर पर
साझा होकर भी साझा नहीं
हम एक संसार में रह कर
अपने-अपने, अलग-अलग संसार बनाते हैं
और जिस जगह पर जीते हैं
वो पूरी तरह किसी को दिखा नहीं पाते हैं
अपने अपने अनुभवों का स्वाद लेकर
एक दिन
जब यहाँ से चले जाते हैं
अपनी अपनी दुनियां भी
साथ ले जाते हैं
और वह कुछ क्या है
जो अपनी तरफ से
इस संसार में छोड़ पाते हैं
और वह कुछ क्या है
जो यहाँ से लौटते हुए
हम अपने साथ लेकर जाते हैं
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
४ अक्टूबर 2011
1 comment:
एक यथार्थ,
साधुवाद
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