उसने अपनी हथेलियों को
धूप से धोकर
हाथ की रेखाओं में
ठहरे हुए उजियारे से
जब
आगे बढ़ने का रास्ता पूछा
धडकनों ने
किरणों से चुराई हुए हंसी
खनकाते हुए
रख दिया उसके सामने
उमंगों का नया नगर
और
आँखों ने दिखला दिया
नयी संभावनाओं का रास्ता
माटी ने कहा
अँधेरा होने से पहले
उजियारी रेखाओं पर
चढ़ा दो मेरी परत
श्रम के साथ
माटी में मिले बिना
अमिट नहीं हो सकता
उजियारा
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१२ सितम्बर 2011
1 comment:
श्रम को आशीर्वाद मिले विधाता का।
Post a Comment