Friday, August 26, 2011

ये इतनी सी बात


 
बस इतना ही हुआ था उस दिन
देख कर
अनदेखा कर दिया किसी ने
और 
याद आती रही
बड़ी देर तक
ये इतनी सी बात



 बस चलते चलते
 चुपचाप अपनी ही गली में
    वो कर गया पार 
अपने घर का द्वार
 और 
 करता रहा विचार, 
दूर पहुँच कर
की खोया मैं हूँ
  या खो गया है घर?

 
 
  खेल ही खेल में
 थपकी मार कर
 पूछा था उसने
    बस एक सवाल
 पर 
तरंगित हो गयी सांसों की श्रंखला,
खिल उठी
 जगमगाहट सपनों की 
 देखते-देखते एकाएक
  सुनहरा हो गया
सारा संसार,
 इस तरह
   एक सवाल से
 बरस गया सार और प्यार 


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२६ अगस्त 2011 
 

 

   

2 comments:

Unknown said...

कोमल अहसासों से भरी काव्य रचना बधाई

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरत सारी रचनाएँ ..

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