Saturday, August 20, 2011

एक वसंत सा





अपने आप
तुम्हारा चेहरा
मस्त पवन में
घुलता है
     धीरे-धीरे    
एक वसंत सा 
 मेरे मन में  
 खुलता है




 संबंधों में 
कस कर रहना
 ठीक नहीं है 
 अपनेपन में
  फंस कर रहना
   ठीक नहीं है

 संग-साथ में
रंग मौज के 
 सभी मिटा कर
 मजबूरी में
 हंस कर रहना 
   ठीक नहीं है

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२० अगस्त २०११  

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

अन्दर बाहर साम्य सतत हो।

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