Thursday, August 18, 2011

अर्थ की प्यासी अँगुलियों से


लिख कर
देखता है हर दिन
अपना चेहरा
जैसे कोई
हिलते हुए पानी में
देखना चाहे 
अपनी छवि


शब्द नहीं
  चेहरा बदलता है      
 हर दिन
नया आकार, नए रंग
 नए सपने, नई उलझने
  चेहरे को टटोलते हुए
अर्थ की प्यासी अँगुलियों से
 बार बार 
 नए सिरे से
 होता है प्रयास 
किसी तरह हो जाए
स्पर्श अपरिवर्तनीय का


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१८ अगस्त २०११     

 

3 comments:

Anupama Tripathi said...

शब्द नहीं
चेहरा बदलता है
हर दिन
नया आकार, नए रंग
नए सपने, नई उलझने..

इस प्रयास में लगता है ...अपरिवर्तनीय कुछ भी नहीं है ....!!सब कुछ परिवर्तनशील है .....!!

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत सुन्दर कविता।

केवल राम said...

शब्द नहीं
चेहरा बदलता है
हर दिन

और यह चेहरे का बदलना हर बार उस शब्द के अर्थ को भी बदल देता है ....!

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