सहेजते सहेजते
उसे
जो यूं कुछ भी नहीं है
बीत जाती है उम्र
और तब कहीं
झिलमिलाता है
एक 'कुछ'
जिसकी सुन्दरता ओझल हो जाती है
उसके पीछे
जो 'कुछ नहीं है'
पर सहेजे बिना
यह 'नाकुछ'
बन कर पर्दा
उभर आता है
हमारे और गति के बीच
बिना गति
ना सार, ना सौंदर्य, ना संतोष
तुम्हारे साथ से
जाग्रत होती है जब गति
जान पाता हूँ
मेरे भीतर भी रहता है
एक सागर प्यार का
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
६ अगस्त २०११
1 comment:
सागर का अहसास लहरों से ही होता है।
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