बदलाव जो है
इसकी हलचल और उथल-पुथल के पीछे
एक कुछ है जो
निरंतर शांत
नित्य असम्प्रक्त
लीन अपनी आभा के चिरमुक्त गौरव में
उस कुछ को
देख पाने
उस कुछ से
जुड़ पाने
अडौल होकर
अपने मौन में
खींचता हूँ
ध्यान उस अपरिवर्तनीय का
मांगता ताज़ा स्पर्श
अपने उस सत्य का
जो मेरे 'अविभाज्य' रूप का बोध देकर
मिटा देता है
खंडित होने की बेचैनी
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
५ अगस्त 2011
(भारत यात्रा के बाद पुनः आप सबका अभिवादन, नमन और शुभकामनाएं)
3 comments:
बहुत खूब्।
जिस दिन तार वापस जुड़ जायें, विद्युत प्रवाहित होने लगती है।
आपको भी सादर नमन.
हार्दिक स्वागत है आपका.
भारत यात्रा के बारे में भी कुछ बताएं.
आपकी रचना तो हमेशा की तरह गहन ही होती है.
इस बीच मैंने भी एक पोस्ट लिखी है.
समय मिले तो दर्शन दीजियेगा.
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