Saturday, July 2, 2011

प्रसन्न हो जाने की पात्रता




अब 
शायद अँगुलियों पर गिने जा सकते हैं
वो लोग
जिन्हें उस बरगद की छाँव सुहाती थी
जो लोग
ठंडी हवा की एक झोंके के साथ
वहां तक जा पहुँचते थे
जहाँ तक 
समय भी नहीं पहुँच सकता

अब
शायद अँगुलियों का प्रयोग
गिनने के लिए करने वाले लोग
लुप्त हो चुके हैं
अंगुलियाँ 'की बोर्ड' के साथ
इतनी घुल-मिल गयी हैं 
की
किसी से हाथ मिलाने पर भी
ढूँढने लगती हैं
दूसरे मनुष्य के हाथों का
वो 'की बोर्ड' जिस पर
दो चार कीज़ दबा कर
'आत्मीयता की पगडंडी' पर से गुजरे बिना
ही
संभव हो जाये मतलब साधना

अब
शायद अँगुलियों पर गिने
जा सकते हैं वो लोग
जिन्हें 
बिना किसी मतलब के
किसी से मिलने, बतियाने
मुस्कुराने, खिलखिलाने
और
बिना किसी लाभ की अपेक्षा के
प्रसन्न हो जाने की पात्रता
ज्यों की त्यों बनी हुई है


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२ जुलाई २०११   

  
   
 
 
     

7 comments:

Anupama Tripathi said...

अब
शायद अँगुलियों पर गिने
जा सकते हैं वो लोग
जिन्हें
बिना किसी मतलब के
किसी से मिलने, बतियाने
मुस्कुराने, खिलखिलाने
और
बिना किसी लाभ की अपेक्षा के
प्रसन्न हो जाने की पात्रता
ज्यों की त्यों बनी हुई है

सच बात है ...! ऐसे वातावरण में, कुछ लोगों के प्रयास से ही ..ईश्वर करे उन लोगों की संख्या दिनों दिन बढ़ती ही जाये ....
शुभकामनायें .

Lalit said...

Very true. I can literally count on my fingers how many such relationships I have in my (our) life. I am blessed to have you as one of them. God is great.

प्रवीण पाण्डेय said...

निश्छल हो प्रसन्न रहने का गुण ही तो सीखना है।

Rakesh Kumar said...

अदभुत प्रस्तुति ,अशोक जी
आप तो दिल में उतर चुके हैं,
अब अँगुलियों पर कैसे गिने आपको.

'प्रसन्न हो जाने की पात्रता'
भी निराली है.जिस हृदय में प्रभु बसते हो
वहाँ बनावट का क्या काम.प्रसन्नता स्वाभाविक
ईश्वरीय गुण ही तो है.

Unknown said...

अब शायद अँगुलियों का प्रयोग गिनने के लिए करने वाले लोग लुप्त हो चुके हैं
अंगुलियाँ 'की बोर्ड' के साथइतनी घुल-मिल गयी हैं की किसी से हाथ मिलाने पर भीढूँढने लगती हैं दूसरे मनुष्य के हाथों का वो 'की बोर्ड'

अदभुत प्रस्तुति ,अशोक जी

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत बढ़िया सर!
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कल 05/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत गहन अभिव्यक्ति

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