Wednesday, June 8, 2011

मौन में अनायास


धूप का हाथ पकड़ कर
बादलों से
बाय-बाय कहता
फूलों की घाटी में
उतरता हुआ
वह
एक क्षण
पर्वतों के विस्तार को 
देख कर
हो लिया मगन
धूप-छाँव से परे के
मौन में अनायास

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
८ जून २०११           

3 comments:

Unknown said...

बेहतरीन सोच ऐसे ही शब्द लेते है रोजाना , बधाई

प्रवीण पाण्डेय said...

कभी धूप तो कभी छाँव।

Anupama Tripathi said...

धूप-छाँव से परे के
मौन में अनायास

sunder rachna.

सुंदर मौन की गाथा

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