नया और कुछ हो न हो
मैं ही होता हूँ नया
क्षण क्षण
नित्य नूतन के साथ
नए नए ढंग से जुड़ते हुए
कभी उल्लसित
कभी चिंतित
कभी शांत
कभी व्यग्र
कभी अपने निरंतर विस्तार की अनुभूति से आल्हादित
कभी अपने क्षुद्रता के बोध से नियंत्रित
नया और कुछ हो न हो
मैं तो होता ही हूँ नया
हर क्षण
और नूतनता को आत्मसात करने की
मेरी लय
जब
नित्य नूतन की लय से मेल खाती है
अपने संभावित विस्तार की पराकाष्ठा का दर्शन कर
एक क्षण
अहोभाव में तिरता
अव्यक्त आनंद के ज्वार में लीन
गति और स्थिरता का भेद भूल कर
एकमेक सा हो जाता हूँ
उसके साथ
जो पूर्ण होकर भी निरंतर नित्य नूतन है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
गुरुवार, ९ जून २०११
2 comments:
हर पल होता है नूतनता का आभास।
बस यही हो जाये तो सब चाहते दफ़न हो जायें
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