Tuesday, June 21, 2011

कृतज्ञता पुष्प अर्पित करने


तुम कितना कुछ देख, सुन, समझ चुके हो
कितनी चोटियाँ अनुभूति की
छू चुके हैं 
तुम्हारे चरण

विस्मय इस बात का
की इतने विस्तार को पचा कर
सहजता से
हमारी गली में आकर
 
तुमने हमारे मेंढक से मन को
फुदकना छोड़ कर
उड़ने का आव्हान किया

तुम्हें आस्था है
हमारे पंखों में
तुम्हारी आश्वस्ति से
अनंत का एक स्पर्श
यह जो स्फूर्ति जगा देता है

इसे लेकर
तुम्हारी अगली यात्रा की बाट देखना छोड़
अखंड तक नहीं
तुम्हारे द्वार तक पहुँचने का संकल्प ले
निकल पडा हूँ

अपने पंखों का परीक्षण करने नहीं
बस तुम्हारे चरणों में
अपने कृतकृत्यता से उपजे
यह कृतज्ञता पुष्प अर्पित करने


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
             मंगलवार, २१ जून २०११              

2 comments:

vandana gupta said...

नमन है।

प्रवीण पाण्डेय said...

पंखों की ऊर्जा बनी रहे,
कृपा छाँव बन घनी रहे।

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...